शारदीय नवरात्र के सातवें दिन माता पार्वती के उग्र स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। ऐसे में शारदीय नवरात्र में बुधवार 09 अक्टूबर को माता कालरात्रि की पूजा की जाएगी। तो चलिए जानते हैं माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) की कथा और कैसे करें पूजा और मंत्र आराधना।
माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) का स्वरूप
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि (Maa Kalratri) का पूजन किया जाता है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। ये दुष्टों का संहार करती हैं। इनका रूप देखने में अत्यंत भयंकर है, लेकिन ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। इनका वर्ण काला है व तीन नेत्र हैं, मां के केश खुले हुए हैं और गले में मुंड की माला धारण करती हैं। ये गदर्भ (गधा) की सवारी करती हैं। इनके नाम का उच्चारण करने मात्र से बुरी शक्तियां भयभीत होकर भाग जाती हैं।
माँ कालरात्रि (Maa Kalratri)की कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार असुर रक्तबीज ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें हराया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। रक्तबीज को एक वरदान प्राप्त था कि उसके खून की बूंद धरती पर गिरते ही उससे और असुर पैदा हो जांयेंगे। इस कारण देवताओं को उसे हराना असंभव हो रहा था। देवी दुर्गा ने रक्तबीज को मारने के लिए अपने भीतर से माँ कालरात्रि (Maa kalratri) को प्रकट किया। माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) ने अपने विकराल रूप से युद्ध भूमि में रक्तबीज का सामना किया। जब भी रक्तबीज का खून गिरता, माँ कालरात्रि (Maa Kalratri)उसे अपनी जीभ से पी लेतीं, जिससे नए असुर उत्पन्न नहीं हो पाए। इस प्रकार माँ कालरात्रि (Maa kalratri) ने रक्तबीज का संहार कर देवताओं को उसके भय से मुक्त किया।
माँ कालरात्रि अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करती हैं और शत्रुओं का नाश करती हैं। उनकी पूजा से जीवन में भय, रोग, शत्रु और दुष्टात्माओं से मुक्ति मिलती है।
माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) की पूजा विधि
- मां कालरात्रि की पूजा के लिए सुबह चार से 6 बजे तक का समय उत्तम माना जाता है।
- इस दिन प्रातः जल्दी स्नानादि करके मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
- इसके बाद मां के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।
- अब फल-फूल मिष्ठान आदि से विधिपूर्वक मां कालरात्रि का पूजन करें।
- पूजा के समय मंत्र जाप करना चाहिए, तत्पश्चात मां कालरात्रि की आरती करनी चाहिए।
- इस दिन काली चालीसा, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम आदि चीजों का पाठ करना चाहिए।
- इसके अलावा सप्तमी की रात्रि में तिल के तेल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति भी जलानी चाहिए।
- माँ कालरात्रि को गुड़ व हलवे का भोग लगाना चाहिए, इससे वे प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं।
माँ कालरात्रि (Maa Kalratri) की पूजा आराधना मंत्र-
‘ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।
माँ कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।
काल के मुह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतार ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ॥
खडग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥
सभी देवता सब नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी ।
ना कोई गम ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें ।
महाकाली माँ जिसे बचाबे ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह ।
कालरात्रि माँ तेरी जय ॥
नवरात्र के सातवें दिन यदि आप व्रत नहीं भी कर रहे हैं, तब भी तामसिक भोजन, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन किसी व्यक्ति या जीव को भी बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए। इस दिन क्रोध और दुर्व्यवहार से बचना चाहिए। नवरात्र की पूरी अवधि में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि आप इन सभी बातों का ध्यान रखते हैं, तो इससे देवी की कृपा आपके ऊपर बनी रहती है।