Shardiya Navratri Day 6 – शारदीय नवरात्री के छठे दिन माँ दुर्गा के छठे स्वरुप कात्यायनी माता (Katyayani Mata)की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से साधक को विवाह संबंधी बाधा समेत कई परेशानियों से छुटकारा मिलता है। आइये जानते कैसे करें माँ कात्यायनी की पूजा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माँ करने से विवाह संबधी बाधा दूर हो जाती है। माँ कात्यायनी (Katyayani Mata) की पूजा से बृहस्पति गृह मजबूत होता है, शत्रु का भय समाप्त होता है, स्वास्थ्य संबंधी समस्या दूर हो जाती है। मान्यता है की माँ कात्यायनी (Katyayani Mata)को शहद अर्पित करने से सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है।
कात्यायनी माता (Katyayani Mata) का स्वरुप
कात्यायनी माता सवारी शेर है। इनकी ४ भुजाएं हैं, 2 भुजाओं में कमल और तलवार धारण करती है। माँ कात्यायनी की एक भुजा वर मुद्रा और दूसरी भुजा अभय मुद्रा में रहती है।
कात्यायनी माता (Katyayani Mata) की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके स्वच्छ कपडे पहने।
- माँ की प्रतिमा को गंगाजल से स्नानं कराये।
- कात्यायनी माता को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- माता को लाल पुष्प अर्पित करें, रोली या कुमकुम लगाए और फल व् मिष्ठान का भोग लगाए।
- माँ कात्यायनी को शहद अर्पित अवश्य करें, इससे आपको सुन्दर रंग की प्राप्ति होगी। (मान्यता अनुसार)
- अंत में आरती करें और भूल चूक की माता से माफ़ी मांग कर अपनी मनोकामना माँ से मांगे।
कात्यायनी माता (Katyayani Mata) की कथा
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार, एक बार महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुई और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। कात्यायन ऋषि ने मां के सामने अपनी इच्छा प्रकट की, इस पर मां भगवती ने उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार तीनों लोकों पर बढ़ता ही जा रहा था। इससे सभी देवी-देवता और ऋषि -मुनि बहुत परेशान हो गए।
महिषासुर को वरदान प्राप्त था की उसका वध एक स्त्री के हाथो ही हो सकता है। महिसासुर बहुत अभिमानी था और उसकी नजर में स्त्री कोई इज़्ज़त नहीं थी उसे लगता था स्त्री बस भोग की वस्तु है।
महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवी देवता त्रिदेवों के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे ,तब त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तेज से देवी को उत्पन्न किया, जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी (Katyayani Mata) की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
महिषासुर के वध के बाद, देवी कात्यायनी की पूजा का प्रचलन आरंभ हुआ। नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की विशेष पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ कात्यायनी (Katyayani Mata) की पूजा करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
कात्यायनी माता की आरती
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
कात्यायनी माता की पूजा मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
कात्यायनी माता की प्रार्थना
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी माता की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस प्रकार, कात्यायनी माता की यह कथा हमें सिखाती है कि अन्याय और अधर्म का अंत सदैव सत्य और धर्म के द्वारा होता है। माँ कात्यायनी सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें साहस, शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं।