दिवाली के दिन क्यों करते हैं माता काली की पूजा,क्या है रहस्य काली माता की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja) का और जानें क्या है चमत्कार

दीपावली या दिवाली में काली की पूजा दो बार होती है, एक बार नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) के दिन और दूसरी  बार दिवाली के दिन आधी रात में माता काली की पूजा (Kaali Maata ki Pooja) करने का विधान है।

Kaali Maata Ki Pooja

आपके मन में भी ये विचार आ रहा होगा की दिवाली में तो लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है तो काली माता की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja) क्यों की जाती है। आइये आज हम बात करेंगे काली माता की पूजा का महत्व और पूजा की विधि।

अंधकार पर प्रकाश के विजय का त्यौहार दिवाली भारत में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल ये त्यौहार 31 अक्टूबर को मनाया जायेगा। इस दिन विशेष रूप से माँ लक्ष्मी और श्री गणेश जी की पूजा की जाती है, इसके साथ ही इसी दिन काली माता की भी पूजा (Kaali Maata ki Pooja) की जाती है। काली पूजा को महानिशा पूजा या श्यामा पूजा भी कहते हैं। काली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, उसी दिन जिस दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। यह मान्यता है की इसी दिन काली माता 64000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी।

दिवाली पर क्यों करते है काली माता की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja) ?

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार काली माता का पूजन (Kaali Maata Ki Pooja) करने से भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। माँ काली की पूजा से कुंडली में विराजमान राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार राक्षशों का वध करने के बाद भी माता काली का क्रोध  शांत नहीं हुआ और वह संपूर्ण सृष्टि का  विनाश करने लगी तब स्वयं शिव जी उनका गुस्सा शांत करने के लिए उनके पैरों के निचे लेट गए थे। भगवान् शिव के शरीर पर जब उनके पैर का स्पर्श हुआ तो तुरंत उनका क्रोध शांत हो गया। इसी की याद में दिवाली के दिन उनके रौद्र रूप काली की पूजा की की जाती है। माता काली की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja) करने वाले भक्तों को माता सभी प्रकार के डर से निर्भीक और सुखी बनती है और अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती है।

कैसे करें माता काली की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja)?

  • पूजा के पहले शरीर की शुद्धता का ध्यान रखना जरूरी है, इसलिए पहले स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। इस दिन काई लोग तिल का तेल लगाकर भी स्नान करते हैं।
  • मंदिर में माँ काली का प्रतिष्ठापन करें, प्रतिष्ठापन में आप काली माँ की मूर्ति या चित्र का प्रयोग कर सकते हैं, सोने, चांदी या भोजपत्र का आसन रखें और उसपर मां काली का स्थान बनाएं।
  • पूजा के समय, सरसों या तिल के तेल का दीया जलाएं और धूप-बत्ती का उपयोग करें।
  • माँ काली को लाल फूल, सिन्दूर और चावल का अर्पण करें। लाल रंग को माँ काली की पूजा में शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
  • “ॐ क्रीं कालिकायै नमः”  इस मंत्र का उच्चारण 108 बार करें।  इसके उच्चारण से हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  • कुछ स्थान पर भक्तों के मध्य बलि देने की प्रथा भी होती है, लेकिन ये आज के समय में बहुत कम हो गई है। इसकी जगह, आप नारियल, लड्डू या मिठाई का अर्पण भी कर सकते हैं।
  • आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण करें। ये प्रसाद माँ काली की कृपा और आशीर्वाद के रूप में सबको प्रदान किया जाता है।
  • पूजा के अंत में मां काली का ध्यान करते हुए शांति और रक्षा की प्रार्थना करें। आप उनसे अपनी सारी समस्याओं का समाधान और शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना कर सकते हैं।

माँ काली की पूजा (Kaali Maata Ki Pooja) में शक्ति और भक्ति दोनों का महत्व होता है। दिवाली पर पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि ये भक्तों को उन्नति और रक्षा प्रदान करती है।

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