भाद्रमास मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी के रूप में मनाई जाती है। इस बार अनंत चतुर्दशी का पर्व 17 सितंबर, मंगलवार को है। इस दिन अनंत भगवान् (विष्णु) की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं सौभाग्य की रक्षा एवं सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।
इस विधि से करें अनंत चतुर्दशी का व्रत
इस दिन व्रत करने वाली महिला को सुबह व्रत के लिए संकल्प लेना चाहिए व भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। अनंत भगवान् (विष्णु) के सामने 14 ग्रंथियुक्त अनन्त सूत्र (14 गांठ युक्त धागा) को रखकर भगवान विष्णु के साथ ही उसकी भी पूजा करनी चाहिए।
- पूजा में रोली, मोली, चंदन, फूल, अगरबत्ती, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) आदि का प्रयोग करना चाहिए और प्रत्येक को समर्पित करते समय “ऊँ अनन्ताय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
- पूजा के बाद यह प्रार्थना करें- नमस्ते देवदेवेशे नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेंद्र नमस्ते पुरुषोत्तम।। न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि। यानीह कर्माणि मया कृतानि।। सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व। प्रयाहि तुष्ट: पुनरागमाय।। दाता च विष्णुर्भगवाननन्त:। प्रतिग्रहीता च स एव विष्णु:।। तस्मात्तवया सर्वमिदं ततं च। प्रसीद देवेश वरान् ददस्व।।
- प्रार्थना के बाद कथा सुनें तथा रक्षासूत्र पुरुष दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में बांध लें। रक्षासूत्र बांधते समय इस मंत्र का जाप करें- अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव। अनन्तरूपे विनियोजितात्मामाह्यनन्तरूपाय नमोनमस्ते।।
- इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर व दान देने के बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन नमक रहित भोजन करना चाहिए।
अनंत चतुर्दशी पर अनंत भगवान् (विष्णु) को खीर का भोग लगाएं। इसमें तुलसी के पत्ते जरूर डालें। व्रत न कर पाएं तो इस उपाय से भी भगवान की कृपा आप पर बनी रहेगी और आपकी समस्याएं दूर हो सकती हैं।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में सुमंत नाम के एक ऋषि थे, उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। कुछ समय के बाद दीक्षा ने सुशीला नाम की कन्या को जन्म दिया, परन्तु कुछ ही समय के बाद दीक्षा की मौत हो गयी उसकी मौत के बाद ऋषि को सुशीला के पालन पोषण की चिंता होने लगी क्यूंकि सुशीला उस समय बहुत छोटी थी। इस कारन ऋषि ने कर्कशा नाम की युवती से दूसरा विवाह किया। कर्कशा अपने नाम की भाति अत्यंत कर्कश स्वाभाव की थी।
जैसे तैसे प्रभु की कृपा से सुशीला बड़ी होने लगी, अब ऋषि सुमंत को सुशीला के विवाह की चिंता सताने लगी। काफी प्रयासों के बाद ऋषि कौडिन्य से सुशीला का विवाह हुआ। लेकिन विवाह के पश्चात भी सुशीला को दरिद्रता का सामना करना पड़ा, उसे जंगल में भटकना पड़ रहा था।
एक दिन सुशीला ने देखा की कुछ लोग अनंत भगवान् की पूजा कर रहे हैं और हाथ में अनंत रक्षा सूत्र बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान् का महत्त्व जाना और उनसे पूजन और व्रत की विधि पूछ कर व्रत रखना शुरू किया। पूजा के पश्चात् वह हाथ में अनंत भगवान् का रक्षा सूत्र बांधने लगी। धीरे धीरे उनके दिन सुधर गए और सब कुछ ठीक होने लगा। कौडिन्य ऋषि में अहंकार आने लगा, उन्हें लगा ये सब उनकी मेहनत से ही हो रहा है।
अगले वर्ष अनंत चतुर्दशी के दिन सुशीला अनंत भगवान् की पूजा अर्चना कर रक्षा सूत्र बांध कर घर लौटी तो कौडिन्य ऋषि ने उसके हाथ में बंधा रसखा सूत्र देख कर पूछा की ये क्यों बांधा हैं ? सुशीला ने बताया की ये अनंत (विष्णु) भगवान का रक्षा सूत्र है, अनंत भगवान् की कृपा से ही हमारे दिन सुधरे हैं। सुशीला से ये सब सुन कर ऋषि कौडिन्य को बिलकुल अच्छा नहीं लगा, वह खुद को अपमानित महसूस करने लगे। ऋषि को लगा की सुशीला मेरी मेहनत का श्रेय भगवान् अनंत को दे रही है, उन्होंने सुशीला के हाथ से वो रक्षा सूत्र उतरवा दिया।
इससे अनंत भगवान् रुष्ट हो गए और उन्होंने ऋषि कौडिन्य को दण्डित किया। धीरे धीरे ऋषि और उनकी पत्नी सुशीला के दिन फिर खराब हो गए उन्हें भोजन के लिए फिर भटकना पड़ा।
एक दिन किसी विद्वान ऋषि ने उनको एहसास कराया की उन्होंने भगवान् अनंत का अपमान किया है इस वजह से तुम्हारी ये हालत हो गयी है, विद्वान ने ऋषि कौडिन्य को पश्चाताप करने के लिए कहा।
ऋषि अकौडिन्य और सुशीला ने लगातार 14 वर्षो तक भगवान् अनंत के व्रत और पूजा आराधना की, उनकी पूजा से भगवान् प्रसन्न हुए और उन्हें सदा सुखी रहने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद से ऋषि व् उनकी पत्नी सुशीला सुखपूर्वक रहने लगे।
अनंत चतुर्दशी पर करें विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करने में कोई ज्यादा नियम विधि नहीं है परंतु मन में श्रद्धा और विश्वास अटूट होना चाहिए। भगवान की पूजा करने का एक विधान है कि आपके पास पूजन की सामग्री हो या ना हो पर मन में अपने इष्ट के प्रति अगाध विश्वास और श्रद्धा अवश्य होनी चाहिए।
ठीक उसी प्रकार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते समय आपके हृदय में भगवान श्री विष्णु अर्थात नारायण के प्रति पूर्ण प्रेम श्रद्धा विश्वास और समर्पण भाव का होना अति आवश्यक है। जिस प्रकार की मनो स्थिति में होकर आप विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करेंगे उसी मनो स्तिथि में भगवान विष्णु आपकी पूजा को स्वीकार करके आपके ऊपर अपनी कृपा प्रदान करेंगे।
भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ करने की महिमा अगाध है। श्रीहरि भगवान विष्णु के 1000 नामों (Vishnu 1000 Names)के स्मरण मात्र से मनुष्य के पातको का नाश हो जाता है। जो भी प्राणी भगवान विष्णु के 1000 नामों का स्मरण करता है उसकी आयु, विद्या, यश, बल बढ़ने के साथ साथ वह संपन्नता, सफलता, आरोग्य और सौभाग्य प्राप्त करता है। उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और वह दैवीय सुख, ऐश्वर्य, संपदा के साथ-साथ संपन्नता का स्वामी बनता है।